छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा एक प्राचीन पर्व है जो सूर्य देवता की उपासना के लिए समर्पित है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य और उनकी ऊर्जा का सम्मान करना है, जो हमें जीवन और प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। छठ पूजा की शुरुआत का जिक्र महाभारत में भी मिलता है, जब द्रौपदी और पांडवों ने अपने राज्य की समृद्धि के लिए सूर्य की पूजा की थी।
यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें कठिन उपवास, पवित्र स्नान, और सूर्यास्त एवं सूर्योदय के समय अर्घ्य देना शामिल है। इस पर्व के दौरान लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य और अपने परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है, लेकिन अब यह पूरे भारत और विश्व में लोकप्रिय हो गया है।
छठी मैया कौन हैं?
छठ पूजा में छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व है। छठी मैया, जिन्हें देवी षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी मानी जाती हैं। वे प्रकृति की अधिष्ठात्री माता हैं और देवसेना नाम से भी पूजी जाती हैं। मान्यता है कि छठी मैया बच्चों के जन्म के बाद छह दिनों तक उनकी रक्षा करती हैं, जिससे उन्हें लंबी आयु, स्वास्थ्य और सौभाग्य प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है, यही कारण है कि छठ पूजा में सूर्य के साथ उनकी पूजा की जाती है। साथ ही, कुछ मान्यताओं में उन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री बताया गया है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करते समय प्रकृति के छह अंशों को उत्पन्न किया, जिनमें से छठा अंश छठी मैया हैं। उनकी सवारी बिल्ली है, जो उनकी शक्ति और रहस्यमयी स्वरूप का प्रतीक है।
छठी मैया और माँ पार्वती का संबंध
छठी मैया और माँ पार्वती के बीच संबंध को लेकर विभिन्न मान्यताएँ हैं। कुछ पौराणिक कथाओं और लोक परंपराओं में छठी मैया को माँ पार्वती का छठा रूप माना जाता है। माँ पार्वती, जो हिंदू धर्म में शक्ति और मातृत्व की देवी हैं, विभिन्न रूपों में पूजी जाती हैं। मार्कण्डेय पुराण में उल्लेख है कि देवी प्रकृति ने स्वयं को छह रूपों में विभाजित किया, जिसमें छठा रूप षष्ठी देवी या छठी मैया का है, जो बच्चों की रक्षा और संतान सुख के लिए पूजनीय हैं।
छठी मैया को माँ पार्वती के रूप में देखने की परंपरा विशेष रूप से छठ पूजा के संदर्भ में प्रचलित है, क्योंकि दोनों ही मातृत्व और परिवार की रक्षा से जुड़ी हैं। कुछ मान्यताओं में छठी मैया को देवी कात्यायनी (नवरात्रि की छठी दुर्गा, जो माँ पार्वती का ही रूप हैं) से भी जोड़ा जाता है। हालांकि, अन्य कथाओं में छठी मैया को स्वतंत्र रूप से सूर्य की बहन या ऋषि कश्यप और अदिति की पुत्री के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार, जबकि छठी मैया और माँ पार्वती को एक ही माना जा सकता है, उनकी पूजा में क्षेत्रीय और सांस्कृतिक भिन्नताएँ मौजूद हैं। छठ पूजा में छठी मैया का पूजन सूर्य की शक्ति के साथ मिलकर परिवारों को आशीर्वाद प्रदान करता है।
छठ पूजा के चार दिन
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व है:
- नहाय-खाय: पहले दिन, व्रती पवित्र स्नान करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। यह दिन शुद्धिकरण के लिए होता है।
- खरना: दूसरे दिन, व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल की खीर का प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित करते हैं।
- संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन, सूर्यास्त के समय नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य और छठी मैया को अर्घ्य दिया जाता है।
- उषा अर्घ्य: चौथे दिन, सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
छठ पूजा का सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। इस पर्व में सभी वर्गों के लोग एक साथ मिलकर नदी या तालाब के किनारे पूजा करते हैं। यह पर्व पर्यावरण के प्रति सम्मान और प्रकृति के साथ सामंजस्य को भी दर्शाता है, क्योंकि इसमें सूर्य और जल जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती है।
छठ पूजा में उपयोग होने वाले प्रसाद, जैसे ठेकुआ, फल, और गन्ना, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाते हैं। यह पर्व परिवार और समुदाय को एकजुट करने का भी अवसर प्रदान करता है।

